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Khwaja Garib Nawaz Aur Qutubuddin Mureed e Khaas

हज़रत ख़्वाजा गरीब नवाज़ र.अ  से  हज़रत  क़ुतुबुद्दीन बख्तियार काकी से मुलाकात और उसी व्क्त मुरीद हुए हज़रत क़ुतुबुद्दीन

हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती सरकार अपनी ज़िंदगी मे काफी देश और शहर मे  गए और हर जगह अपनी तालिम और इल्म के जवारहात बाँट ते रहे और अन गिनत अल्लाह वालों से मिले और अन गिनत लोगों को मुरीद बनाया सुबहान अल्लाह जब अल्लाह किसी को अपनी रज़ा देता है तो उसके अंदर उसकी रहमत से कमालात की बरसात करदेता है । 

इस सफर के दौरान, जब वह अस्फ़हान के प्रसिद्ध शहर में पहुँचे, तो उन्होंने शेख़ मोहम्मद अस्फ़हानी से मुलाकात की। 14 साल के क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार अवाशी (जो 569 हिजरी में पैदा हुए थे) उस समय एक मुरशिद (गुरु) की तलाश में थे और वह शेख़ मोहम्मद से इस बारे में संपर्क करने के बारे में सोच रहे थे, लेकिन तभी उनकी मुलाकात हज़रत सय्यदना ख़्वाजा मोईनुद्दीन र.अ  से हुई।

हज़रत सय्यदना ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती ने उनके अंदर एक बहुत ही रूहानी तलब देखि और उन्हें अपना 'मुरीद' बनाया अल्लाह ताला के हुकूम से। ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन 583 हिजरी में उनके साथ सफर  पर गए और बाद में 586 हिजरी में, केवल 17 साल की उम्र में, हज़रत सय्यदना मुहम्मद सलल्लाहु अलेही व आलेही वसलम . की 'बशारत' (सपने में भविष्यवाणी) के परिणामस्वरूप ख़लीफ़ा के रूप में नियुक्त हुए। ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन एक जन्मजात संत थे क्योंकि उन्होंने अल्लाह ताला के हुक्म से अपनी माँ के गर्भ में रहते हुए क़ुरान का आधा हिस्सा याद कर लिया था और उसे पढ़ते थे। जब अल्लाह ताला किसी अपने बंदे पे निगाह डालता है तो उससे खास करदेता है अल्लाह ताला की बारगाह मे ऐसे करिश्मे करना कोई बड़ी बात नहीं क्युकी वो मालिक है खालिक है राजिक है उसके पास ही सब कुछ है। 

हज़रत सैयदना ख़्वाजा मोइनुद्दीन  हसन चिश्ती (र.अ) मक्का-मदीना की यात्रा

इस यात्रा (583-585 हिजरी) के दौरान, ख़्वाजा गरीब नवाज़  ने मक्का, मदीना सहित कई अन्य स्थानों का दौरा किया। उन्होंने हज अदा किया और वहाँ काफी समय तक लगातार इबादत रीयाज़त जिक्र मै  मशगूल रहे ।फिर अल्लाह ताला का एसा करम हुआ  एक दिन उन्हें 'निदा' सुनाई दी, "ओ मोईनुद्दीन, हम तुमसे खुश हैं; तुम जो चाहो, मांग सकते हो।" ख़्वाजा गरीब नवाज़  ने सजदे मै जाके अर्ज किया बारी ताला, मैं सिर्फ तुझसे इतनी इल्तिजा करता हु  मोईनुद्दीन के सिलसिले के मुरिदों को बखशदे   'तो अल्लाह ताला की रहमत फिर बरसी और  'निदा आई , "ओ मोईनुद्दीन, तुम हमारे प्यारे बंदे  हो, हम तुम्हारे मुरिदों को माफ करेंगे और जो लोग तुम्हारे सिलसिले में क़यामत तक मुरिद बनेंगे, उन्हें भी माफ करेंगे।" सुबहान अल्लाह रब्बूल आलामीन जब रहमत के दरवाजे खोलता है तो किसी को खाली नहीं जाने देता है अपनी बारगाह से । 

नबी करीम के हुकूम से बरे सगीर भारत मैं आए 

फिर गरीब नवाज़  मदीना गए। वहाँ भी उन्होंने बहुत समय तक इबादत और जिक्र और दरूद ओ सलाम मे मशगूल रहे ।  फिर एक रात  हज़रत सय्यदना मुहम्मद सलल्लाहु अलेही वा आलेही वस्लम की बारगाह से बुलावा आया तो खादिम आसताना आवाज लागने लगे मोइनउदीन हाजिर हो और उस नाम के काफी लोग वह मोजूद थे सबने कहा यहा इसस नाम के काफी ग़ुलाम है तो फिर खादिम ए आसताना को हुकूम हुआ मोइनउदीन हसन चिश्ती को बुलाओ, फिर क्या था गरीब नवाज़ नजरे झुकाए दरूद ओ सलाम का जिक्र सजाकर अपने जदहे पाक की बारगाह मई हाजिर हुए और और आजिज़ाना सलाम अर्ज किया जवाब मिला फिर ये अलकाब मिले कूटबुल मशायिक बहरोबर , ऐने दिन उसके बाद "ओ मोईनुद्दीन, तुम हमारे का मददगार हो। हम बरे सगीर  को तुम्हें  देते हैं जहाँ अंधकार छाया हुआ है। अजमेर जाओ। तुम्हारी उपस्थिति से अंधकार समाप्त हो जाएगा और अल्लाह ताला की मूहोंबबत जागे गई इस्लाम चमकेगा। अल्लाह तुम्हारी मदद करेगा।" ख़्वाजा मोईनुद्दीन इस 'हुकूम' से बहुत खुश हुए, लेकिन उन्हें अजमेर के भूगोल के बारे में चिंता थी। एक और आध्यात्मिक संवाद में, हज़रत मुहम्मद ने उन्हें अजमेर का नक़्शा दिखाया, जिसमें उसके आस-पास की पहाड़ियाँ और क़िला भी शामिल थे। सुबहान अल्लाह नबी करीम सलल्लाहु अलेही वा आलेही वस्लम ने अपनी अताओ से गरीब नवाज़ को भेजा इसलिए आपको अताये रसूल कहते है इसके आगे किसी डिग्री की जरूरत नहीं है। 

आपका सफर जारी रहा 

जब उनका नाम हरात में फैलने लगा, तो वह अफ़ग़ानिस्तान के सब्ज़वार गए। यहाँ के शासक, यदगर मोहम्मद, एक अत्याचारी और घमंडी शासक थे। वह बातिनी थे और इस्लाम के पहले तीन ख़लीफ़ों का सम्मान नहीं करते थे, साथ ही वह सूफी दरवेशों और पवित्र हस्तियों का भी अपमान करते थे। एक दिन हज़रत ख़्वाजा साहिब ने उनके बगीचे में विश्राम किया और क़ुरान पढ़ने लगे। यादगार  मोहम्मद के सेवकों ने उन्हें बगीचे से बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन हज़रत ख़्वाजा साहिब की रूहानी शकसीयत को देख के वो सब खौफ मई रहगाए  और यदगर मोहम्मद ने खुद ही माफी माँगी। जब अल्लाह किसी पे रहमत डालता है तो उससे गरीब नवाज़ बनदेता है सुबहान अल्लाह । 

ग़ज़नी में यात्रा

ग़ज़नी में ख़्वाजा मोईनुद्दीन ने हज़रत शम्सुल-आरीफ़िन शेख़ अब्दुल वहीद से मुलाकात की और कुछ समय उनके साथ रहे। ग़ज़नी की भयानक स्थिति में उन्होंने अपने आध्यात्मिक उपचार और तालिम  से लोगों को सांत्वना दी।

भारत में प्रवेश

587 हिजरी (1191 ई.) में ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भारत आए और दिल्ली की ओर बढ़े। उन्होंने लाहौर में हज़रत दाता गंज बख्श की दरगाह पर 40 दिन बिताए। लाहौर छोड़ते वक्त उन्होंने इस महान संत के प्रति मुहब्बत दिखाई।

 राजा पृथ्वीराज चौहान मा ने बताया था 

राजा पृथ्वीराज चौहान की माँ ने 12 साल पहले राजा को यह चेतावनी दी थी कि एक 'फकीर ' उत्तर से उनके राज्य में आएगा और अगर उसे सम्मान खराब नहीं करना । जब ख़्वाजा साहिब समाना पहुंचे, तो उन्हें यदगर मोहम्मद के कर्मचारियों द्वारा खतरनाक परिस्थितियों से आगाह किया गया, लेकिन वे साहस से अजमेर की ओर बढ़े।

दिल्ली में साहसिक प्रवेश

दिल्ली में ख़्वाजा साहिब का प्रवेश एक ऐतिहासिक घटना बन गया। राजा पृथ्वीराज के आदेश से उन्हें दिल्ली से बाहर करने की कोशिश की गई, लेकिन उनकी महानता और संतत्व ने लोगों का दिल जीत लिया और वे इस्लाम को अपनाने लगे।

और दिल्ली में इस्लाम का असर आपकी तालिम से यह के लोग दीन  इस्लाम को कुबूल करते गए 

दिल्ली में ख़्वाजा साहिब का प्रवेश इस्लाम के प्रचार की शुरुआत बना और हजारों लोग इस्लाम धर्म को अपनाने के लिए उनके पास आए।

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